सीखते हैं
ये भी फ़न
मजबूर हो कर
दुनिया से
वक़्त से
खुद से भी;
ढूँढते हैं
खुद को
ख़ामोशियों में
कभी मिली गर कहीं
कुचलते हैं ख़्वाब हम भी।
सीखते हैं
ये भी फ़न
मजबूर हो कर
दुनिया से
वक़्त से
खुद से भी;
ढूँढते हैं
खुद को
ख़ामोशियों में
कभी मिली गर कहीं
कुचलते हैं ख़्वाब हम भी।
ना चाहे
ना माँगे
राहें जो आएँ
उनमें हम क्या
खोजें क्या पाएँ?